कयूँ खुशी नही रहती
ज़िंदगी की गलियों में अकेले घूमते हम ज़ेहन में उठते सवालों का जवाब ढूंडते हम सँग चलते हैं इतनों के फिर भी तन्हा ही रेहते हम खुशी के पल आते हैं और चले जाते हैं फुलझडी सी रौशनी कर के दोबारा अंधेरा छोड जाते हैं कयूँ नही रोज़ रोज़ रहता वो खुशी वाला समाँ …